अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, रेप पीड़ित महिलाओं को आज भी इंसाफ़ नहीं

बेटी के साथ बलात्कार की घटना को दो साल

आंशिक रूप से बोलने में अक्षम गुजरात के बनासकांठा ज़िले के पालनपुर तालुका की 21 साल की लड़की के साथ, 2020 में बलात्कार हुआ था।उनकी माँ ने शिकायत दर्ज कराई कि बेटी के साथ बलात्कार की घटना को दो साल बीतने के बाद भी उन्हें एक रुपए की भी आर्थिक मदद नहीं मिली है।

आर्थिक मदद पाने का आवेदन उन्होंने ज़िला न्यायिक सेवा प्राधिकरण में दिया हुआ है, जहाँ से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है।यही स्थिति राज्य के अमरेली ज़िले के राजुला ग्राम की 13 साल की बच्ची की है, जो मानसिक रूप में विकलांग हैं। जब उनके साथ दुष्कर्म हुआ था तो उनके परिवार को छह महीने के बाद बेटी के साथ हुए अपराध का पता चला।

परिवार से परिचित एक सामाजिक कार्यकर्ता ने मीडिया को बताया, “ज़िला न्यायिक सेवा प्राधिकरण से पीड़िता को डेढ़ साल में एक लाख रुपए मिला। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है।”मीडिया ने अपनी पड़ताल और विश्लेषण में पाया है कि पूरे देश में ऐसी पीड़िताओं को बेहद कम मुआवज़ा मिलता है।

हज़ारों पीड़िता, मुआवजा सैकड़ों

मीडिया ने कुछ वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात करके इसकी वजहों का पता लगाने की कोशिश की तथा सूचना के अधिकार का भी इस्तेमाल किया है।

मीडिया ने सूचना के अधिकार के तहत देश के विकसित महाराष्ट्र, दिल्ली और गुजरात राज्यों के 35 ज़िलों से जुड़ी जानकारी हासिल कर यह जानना चाहा कि देश में महिलाओं को अपराध के बाद क़ानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कितना मुआवज़ा मिलता है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, केवल दस फ़ीसदी महिलाओं को आर्थिक मदद या मुआवज़ा मिल पाता है।अंग्रेजी समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल राष्ट्रीय महिला आयोग को महिलाओं के साथ अपराध के 31 हज़ार मामलों की जानकारी मिली थी, सबसे ज़्यादा शिकायतें, उत्तर प्रदेश से मिलीं जबकि दिल्ली दूसरे और महाराष्ट्र तीसरे पायदान पर रहे।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, गुजरात के केवल अहमदाबाद ज़िले में 1524 मामले थे, जबकि राजकोट में 494 मामले थे।सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से पता चला है कि अहमदाबाद में केवल 111 मामलों में पीड़िता को आर्थिक मदद मिली। ज़िला न्यायिक सेवा प्राधिकरण की ओर से मिलने वाली यह मदद राजकोट में केवल 60 पीड़िताओं को मिली।

 ऐसी ही स्थिति महाराष्ट्र और दिल्ली में भी देखने को मिलती हैं

महाराष्ट्र में 2020 में महिलाओं के साथ अपराध के क़रीब 31,954 मामले दर्ज हुए। जबकि इनमें से सिर्फ़ 2,372 को भी मदद मिली। 709 आवेदन अभी भी लंबित हैं और 126 आवेदनों को ख़ारिज किया जा चुका है।

दिल्ली में 2020 में महिलाओं के साथ अपराध के 10,093 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें से राज्य न्यायिक सेवा प्राधिकरण की ओर से केवल 950 मामले में मदद मिली। ये तीनों राज्य अपेक्षाकृत विकसित राज्य माने जाते हैं लेकिन यहां पीड़िताओं को मुआवज़ा मिलने के मामले बहुत कम दिखे हैं।

क्या है इसकी वजह ?
पीड़िताओं की क़ानूनी मदद करने वाले समूह दिशा ( डेवलपमेंट इंटरवेंशन फ़ॉर सोशल ह्यूमन एक्शन ) की निदेशक ज्योति कंडपासोले ने बताया, “ज़िला न्यायिक सेवा प्राधिकरण की कमेटी के सदस्य मुआवज़ा देने का फ़ैसला लेते हैं, अधिकांश मामलों में उनमें पूर्वाग्रह होता है कि अधिकांश रेप के मामले आपसी सहमति से होते हैं। कई बार यह भी होता है कि दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है, इन सबसे वास्तविक पीड़िताओं को मदद मिलने में बहुत मुश्किल होती है।”

ज्योति के मुताबिक, एक बड़ी वजह यह भी है कि अधिकांश पीड़िताओं को यह नहीं मालूम है कि उन्हें आर्थिक मदद मिल सकती है।उन्होंने बताया, “अधिकांश मामले में तो आर्थिक मदद के आवेदन ही नहीं मिलते, पुलिस और न्यायिक व्यवस्था के लोगों में भी संवेदनशीलता की कमी होती है, वे पीड़िताओं को उनके अधिकार के बारे में नहीं बताते।”

ऐसे मामलों में ज़िला न्यायिक सेवा प्राधिकरण में काम करने वाले कर्मचारी पीड़िताओं की मदद नहीं करते, इस वजह से पीड़िताओं को मदद नहीं मिल पाती है। न्यायिक सेवा प्राधिकरण के कर्मचारियों की असंवेदनशीलता, इसकी बड़ी वजह है।

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, केरल में अपराध की शिकार पीड़िताओं को मुआवज़ा देने संबंधी स्कीम को लेकर ज़ागरुकता अभियान चलाने के लिए 2019 में जनहित याचिका दाख़िल की गई थी। वहीं डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल न्यायिक सेवा प्राधिकरण फंड की कमी के चलते आवेदनों पर विचार नहीं कर रहा है।

अपराध पीड़िता कैसे मांग सकती है मुआवजा
‘द लीफ़लेट डॉट इन’ वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, अपराध संहिता की धारा 357 (ए) 2008 में लागू की गई जिसके तहत किसी भी अपराध के पीड़ित राज्य सरकार से मुआवज़े की मांग कर सकते हैं। इस प्रावधान के बाद कई राज्यों ने पीड़ितों की मदद के लिए कई स्कीम लागू करने की घोषणाएं की हैं।

राष्ट्रीय न्यायिक सेवा प्राधिकरण के मुताबिक, पीड़िताओं को यौन अपराध और दूसरे अपराध की एफ़आईआर कॉपी राज्य न्यायिक सेवा के पास जमा करानी होती है। पीड़िता के अलावा उनके परिवार के लोग या फिर अपराध दर्ज होने वाले थाने के पुलिस अधिकारी भी राज्य या ज़िला न्यायिक सेवा प्राधिकरण के पास मुआवज़े की मांग के लिए आवेदन कर सकते हैं।

प्राथमिकी दर्ज कराने की रिपोर्ट के अलावा, अदालत की ओर से लिया गया संज्ञान, मेडिकल रिपोर्ट, मृत्यु प्रमाण पत्र इत्यादि फॉर्म जमा कराना होता है।

क़ानूनी प्रावधान के मुताबिक, ऐसे आवेदनों का निपटारा आवेदन के 60 दिनों के भीतर करना होता है। अलग अलग अपराध की शिकार पीड़िताओं के लिए एक लाख रुपये से दस लाख रूपये तक की आर्थिक मदद देने का प्रावधान है।

                                                                                                         (एन0के0शर्मा)

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