बीच, इमारतें, पेड़, लोग सब पीछे छूटते जा रहे थे
मैं हवाई जहाज से उतरते ही एक अजीब चिपचिपाहट में घिर गया था। बस बंबई की सबसे खराब चीज मुझे यही लगती है। एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही सामने कंपनी की गाड़ी थी। मैं फटाफट उसमें बैठ गया और वह दुम दबाकर भाग खड़ी हुई। बंबई में कुछ नहीं बदला था फिर भी बहुत कुछ बदल गया था।
कार कालिमा में लिपटी सड़क को रौंदती हुई, बंबई के लोगों को पीछे ध्केलती हुई भागे जा रही थी। बीच, इमारतें, पेड़, लोग सब पीछे छूटते जा रहे थे। दोपहर के दो बजे थे। बीच सुस्ता रहा था। सूरज और समुद्र में द्वंद्व युद्ध चल रहा था। लहरें आ-आकर बार-बार झुलसी रेत को लेप कर रही थीं, उसके जख्मों को सहला रही थीं।
बंबई की रफ्रतार शाम और रात की बजाय इस समय कुछ कम थी या शायद चिपचिपाहट की नदी ने सबकी रफ्रतार को कुछ कम कर दिया था। कितनी अजीब बात है…. मेरे लिए बंबई नया नहीं है…. मैं हर महीने यहां आता हूं……
लेकिन आज बंबई बिल्कुल नया शहर लग रहा है जैसे मैं पहली बार यहां आया हूं या फिर मेरी -ष्टि में कुछ बदल गया है या फिर मुझे बंबई को देखने की फुर्सत ही अब मिली है। हमेशा तो मैं टैक्सी में बैठते ही कैफी को फोन मिलाने लगता था या फिर होटल तक पहुंचने तक का सारा समय उसे नान-वेज जोक्स भेजने में ही बिताता था जो दोस्तों ने मुझे भेजे होते थे।…………शेष आगे