कई देश योग का पेटेंट चाहते, इसलिए आगे आकर कहना पड़ता है कि योग भारत का है : मोहन भागवत
सहारनपुर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार
को कहा, ”विश्व के कई देश योग का पेटेन्ट चाहते हैं,
इसलिये हमें आगे आकर कहना पड़ता है कि योग भारत का
है।”
सहारनपुर में शनिवार को पद्मश्री से सम्मानित योग गुरु भारत भूषण द्वारा स्थापित मोक्षायतन योग संस्थान के
49 वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए भागवत ने कहा,”
हमें संस्कृति का दूत बनना
चाहिये। दुनिया के पास सिर्फ भौतिक ज्ञान है,
आध्यात्मिक ज्ञान केवल सिर्फ भारत के पास है जिसे दुनियाभर के
लोग यहां सीखकर जाते हैं।”
योग की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि शरीर, मन और बुद्धि को जोड़ना ही योग है। भागवत ने कहा कि
जलाशय का जल यदि शांत है तो उसका तल दिखाई देगा
, जबकि जल अशांत होने पर तल दिखाई नहीं देगा।यही
स्थिति मनुष्य पर भी लागू होती है, योग धारण करने वाले व्यक्ति को कोलाहल में भी सुनाई देता है,
शांत चित
वाला व्यक्ति कहीं भी बैठ जाए वह एकाग्र हो सकता है क्योंकि उसने अपने चित पर विजय पा ली है।
उन्होंने कहा
कि प्रत्येक कार्य को सत्यम, शिवम, सुन्दरम की तरह सुव्यवस्थित तरीके से करना भी योग है।
भागवत ने कहा कि भारतीय संस्कृति और योग परम्परा पद्धति दुनिया की सबसे प्राचीन है और अब पूरी दुनिया
इसे मान रही है। समारोह को संबोधित करते हुए
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि योग एक
प्राचीन जीवन पद्धति है और पांच हजार साल से अधिक पुरानी योग की विरासत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
संयुक्त राष्ट्र महासभा में रखा जिसके बाद योग दिवस की मंजूरी मिली।
उन्होंने कहा कि कोविड जैसी आपदा में
योग ने लोगों को स्वस्थ रखने का काम किया। राज्यपाल ने योग को संजीवनी बताते हुए कहा कि यही कारण है
कि आज हर कोई योग को स्वीकार कर रहा है। उन्होंने ने कहा कि योग को किसी धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना
चाहिये।