कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में भरोसा जताया
पांच राज्यों में करारी चुनावी पराजय के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने
इस्तीफे की पेशकश के साथ गांधी परिवार के ‘त्याग’ की बात भी कही,
लेकिन कांग्रेस ने उन्हीं के नेतृत्व में भरोसा
जताया और इस तरह पांच घंटे की मंथन-बैठक के बाद भी कांग्रेस की स्थिति यथावत रही। प्रवक्ता ने सिर्फ यह
निष्कर्ष दिया कि पार्टी लड़ती रहेगी, जब तक विजय हासिल नहीं होती।
कांग्रेस में बीते तीन दशकों से बिखराव जारी
पार्टी किससे लड़ती रहेगी? क्या अपने से
ही लड़ती रहेगी? ऐसे सवाल अनुत्तरित रहे हैं। शायद कांग्रेस खुद से ही भिड़ती रहेगी! यह किसी भी किस्म का
लोकतंत्र नहीं है, बेशक पार्टी कुछ भी सफाई देती रहे। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति आज की नहीं है।
उसमें बीते तीन
दशकों से बिखराव जारी है और संगठन छिन्न-भिन्न होता रहा है। यदि प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता-काल को आधार
मान लें, तो 2014 से आज तक कांग्रेस 49 में से 39 चुनाव हारी है।
जनमत इतना भी नहीं मिला कि लोकसभा में
नेता प्रतिपक्ष का पद मिल सके। अब राज्यसभा में भी यह पद छिनने वाला है,
कांग्रेस का संकट वह खुद ही है
क्योंकि कांग्रेस सांसदों की संख्या
लगातार घट रही है। नए सांसद चुने जाने जितना जनादेश नहीं है। दरअसल कांग्रेस का संकट वह खुद ही है।
कांग्रेस कार्यसमिति निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई है और और वही बुनियादी आफत है। उसमें अधिकांश ऐसे नेता
हैं,
जो मनोनीत हैं और गांधी परिवार के रहमो-करम पर नेता बनते रहे हैं। यदि गांधी आलाकमान ने उन्हें सांसदी
विस्तार नहीं दिया अथवा खारिज कर दिया, तो वे ‘असंतुष्ट’ बनकर जी-23 का हिस्सा बन गए हैं और लगातार
नेतृत्व से कड़े सवाल पूछ रहे हैं।
गांधी परिवार से रूटीन में मुलाकात करना असंभव
अब भी उनकी मांग है कि मुकुल वासनिक को अगला कांग्रेस अध्यक्ष चुना जाए।
पार्टी अध्यक्ष मिलने-जुलने वाला, सक्रिय और असरदार होना चाहिए। कुछ हद तक यह सही बात है, क्योंकि गांधी
परिवार से रूटीन में मुलाकात करना असंभव है। वे अपने ही प्रभा-दुर्ग में कैद रहते हैं।
बहरहाल कांग्रेस का संकट
संगठन चुनाव भी नहीं हैं। वे अगस्त-सितंबर तक सम्पन्न हो सकते हैं। संभवतः नया पार्टी अध्यक्ष सामने आ
सकता है। कहानी राहुल गांधी से आरंभ हुई थी और 2019 के आम चुनाव में करारी हार के बाद उन्हीं पर समाप्त
हुई, तो मां सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बना दी गईं। वह आज भी उसी स्थिति में हैं,
जबकि राहुल अघोषित तौर
पर ‘आलाकमान’ हैं। कार्यसमिति की बैठक से ऐन पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरीखे वरिष्ठ पार्टी
नेता ने एक बार फिर राहुल-राग अलापना शुरू कर दिया है।
देश की जनता ही कांग्रेस को कबूल करने को तैयार नहीं
कांग्रेस गांधी परिवार के बिना एक सूत्र में बंधी पार्टी
नहीं रह सकती, हमारा अब भी यही मानना है।
बेशक नया कांग्रेस अध्यक्ष सामने आ जाएगा, लेकिन बुनियादी और सबसे गंभीर संकट यह है कि देश की जनता
ही कांग्रेस को कबूल करने को तैयार नहीं है।
पार्टी आम आदमी के मानस को पहचानने और ग्रहण करने में नाकाम
रही है। उसके मुद्दे सही हैं। राहुल और प्रियंका गांधी आक्रामकता के साथ मेहनत करते रहे हैं। राहुल गांधी तो
औसतन हररोज़ प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करते रहे हैं, लेकिन देश की जनता को यह सब कुछ स्वीकार नहीं है।
सिर्फ इसी आधार पर अंतिम जनादेश नहीं दिए जा सकते। पार्टी की राजनीति प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की
कांग्रेस आम आदमी के मानस को पहचानने में नाकाम
तुलना में ‘बौनी’ साबित होती रही है। फिर भी कांग्रेस आज भी पुराने मिथकों और मुग़ालतों के जरिए सियासत
करना चाहती है। मसलन-कांग्रेस ही भारत का पर्याय है।
देश के साथ मिलकर जो आज़ादी हासिल की थी, उस
आज़ादी को बचाएंगेे। आज़ादी को क्या हुआ है?
वह बिल्कुल सुरक्षित है। कांग्रेस का प्रचार है कि ‘राष्ट्रीय एकता’-
‘राष्ट्रीय हित’ में उसने ही बलिदान दिए हैं। उसे यदि प्रासंगिक बनना है, तो वह ऐसे मुद्दों को चुने, जिन पर देश
उसके साथ जुड़ सके।