गुरु ही संस्कार को परिष्कृत करता है
गुरु तत्व प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में व्याप्त होता है। लौकिक ज्ञान से लेकर ब्रहमज्ञान तक, जन्म से लेकर मृत्यु तक गुरु तत्व की उपस्थिति बनी रहती है। कोई शिक्षा गुरु होता है, तो कोई कुल गुरु। वस्तुतः गुरु सांस्कृतिक धरोहर है।
गुरु ही संस्कार को परिष्कृत करता है। गुरु के आगमन से शिष्य के जीवन में वैचारिक परिवर्तन होता है। शिष्य की मनोदशा बदलती है। यह सब गुरु के अनुग्रह से संभव हो पाता है। स्वयं तप चुका गुरु ही, शिष्य को तपा सकता है यानी उसमें जाग्रति ला सकता है। तपने का तात्पर्य है-जागृति।