नई दिल्ली, 27 फरवरी भारतीयों में मोटापे को लेकर बढ़ती चिंता के बीच नीति आयोग अधिक चीनी,
वसा और नमक वाले खाद्य पदार्थों पर कराधान और ‘फ्रंट-ऑफ-द-पैक लेबलिंग’ जैसी कदम उठाने के प्रस्ताव पर
विचार कर रहा है।
‘फ्रैंट-ऑफ-द-पैक लेबलिंग’ से उपभोक्ताओं को अधिक चीनी, नमक और वसा वाले उत्पादों को
पहचानने में मदद मिलती है।
सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की आबादी के बीच
मोटापे की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए इस तरह के कदम पर विचार चल रहा है।
आयोग ने रिपोर्ट में कहा
है कि भारत में बच्चों, किशोरों और महिलाओं में अधिक वजन और मोटापे की समस्या लगातार बढ़ रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘24 जून, 2021 को नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) की अध्यक्षता में माताओं, किशोरों
और बच्चों को मोटापे से बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक विचार-विमर्श का आयोजन किया गया था।
इसमें कहा गया है कि नीति आयोग आर्थिक विकास संस्थान ( आईईजी) और भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठन
(पीएचएफआई) के सहयोग से इस दिशा में काम कर रहा है। इसके जरिये उपलब्ध साक्ष्यों के आधार उठाए जाने
वाले कदमों की पहचान की जा रही है।
इन उपायों के तहत फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग, एचएफएसएस (चीनी, नमक और वसा की ऊंची मात्रा वाले उत्पाद)
उत्पादों का विपणन और विज्ञापन तथा अधिक चीनी, वसा और नमक वाले उत्पादों पर कर लगाना शामिल है।
गैर-ब्रांडेड नमकीन, भुजिया, वेजिटेबल्स चिप्स और स्नैक्स पर पांच प्रतिशत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लगता है
जबकि ब्रांडेड और पैकेटबंद उत्पादों के लिए जीएसटी दर 12 प्रतिशत है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस-5) 2019-20 के अनुसार, मोटापे से ग्रस्त महिलाओं की संख्या बढ़कर
24 प्रतिशत हो गई है, जो 2015-16 में 20.6 प्रतिशत थी। जबकि पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 18.4 प्रतिशत
बढ़कर 22.9 प्रतिशत हो गया है।
नीति आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में हाइपरलूप का भी जिक्र किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाइपरलूप प्रणाली की प्रौद्योगिकी और व्यावसायिक व्यवहार्यता का अध्ययन करने के
लिए नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति ने अब तक चार बैठकें की हैं
और उप-समितियों का गठन किया गया है।
उप-समितियों ने सुझाव दिया है कि निजी क्षेत्र को हाइपरलूप प्रणाली के निर्माण, स्वामित्व और संचालन की
अनुमति दी जानी चाहिए और सरकार को सिर्फ प्रमाणन, अनुमति, कर लाभ और भूमि (यदि संभव हो) आदि की
‘सुविधा’ प्रदान करनी चाहिए।