लोकसभा के चुनावों की पाठशाला है वर्तमान परिणाम

जीत-हार के कारणों की समीक्षायें की जा रहीं है

देश की पांच विधानसभाओं के परिणामों ने राष्ट्र की दिशा तय करने के लिए आदर्श संकेत दे दिये हैं। राजनैतिक
खेमों में दलगत सिध्दान्तों और आदर्शों के व्यवहारिक स्वरूप का मूल्यांकन शुरू हो गया है।

जीत-हार के कारणों की
समीक्षायें की जा रहीं है। हार के लिए घात और जीत के लिए स्वयं को उत्तरदायी माना जा रहा है।

दूसरों के कृत्यों
को असफलता के लिए रेखांकित करने के पुराने प्रचलन को नये रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा है। झंडा, डंडा और
नारों की बुलंदी को स्वार्थ की तराजू पर तौलने वालों को आइना दिखाने की पहल पर्दे पीछे से प्रारम्भ हो गई है।

कमल का परचम में राष्ट्रीय संगठन और संघ की प्रमुख भूमिका

उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में मोदी का उद्बोधन योगी की भावी नीतियों के लिए सांकेतिक पाठशाला के कम नहीं
रहा। संयासी की मर्यादाओं, आदर्शों और व्यवहार नियंत्रित करने की आवश्यकता का पाठ संत संगठनों ने पठाना
शुरू कर दिया है।

जातिवादी मकडजाल में फंसा उत्तर प्रदेश का भगवां नेतृत्व अब राष्ट्रीय संगठन के दखल के
दखल के बाद झटपटाहट महसूस करने लगा है।

उत्तर प्रदेश में कमल का परचम एक बार पुनः फहराने के पीछे
राष्ट्रीय संगठन और संघ की प्रमुख भूमिका रही है अन्यथा ठाकुर-ब्राह्मण के मध्य योगी के व्दारा पैदा जा चुकी
खाई में पार्टी के डुबाने के आसार पूरी तरह से ठहाके लगाने लगे थे।

उसकी बानगी बुंदेलखण्ड के महोबा में आयोजित
पहली आम सभा के दौरान साफ-साफ प्रदर्शित हुई थी

जिसमें योगी व्दारा कुंवर शब्द के साथ क्षेत्रीय सांसद को
संबोधित करना और सदर विधायक की गरिमा से मंच पर मौजूद ब्राह्मण नेतृत्व की उपेक्षा करना मोदी के समक्ष
उजागर हुआ था जिसकी भरपाई प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में करने की कोशिश की थी।

उन्होंने कुंवर को सीधे
नाम के साथ संबोधन दिया, सदर विधायक को रेखांकित किया और क्षेत्र के अन्य विधायकों को भी अपने भाषण में
समुचित स्थान प्रदान किया। उसी समय यह तय हो गया था

केन्द्रीय नेतृत्व स्वयं नियंत्रक की भूमिका में

कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की कमान
अब केन्द्र के हाथों में पहुंच गई है। टिकिट वितरण के दौरान जातिगत मुद्दों पर आवेदन करने वालों को हाशिये
पर पहुंचा दिया गया। प्रदेश की आवाम की नब्ज टटोलने के बाद ही टिकिटों का आवंटन किया गया।

मोदी ने स्वयं
ही प्रचार की कमान सम्हाली और परिणाम को सकारात्मक रूप प्रदान किया। अब प्रदेश में एक बार फिर भगवां
सरकार अस्तित्व में आने वाली है।

मगर अब पार्टी के संगठन के केन्द्रीय नेतृत्व स्वयं नियंत्रक की भूमिका का
निर्वहन करता दिखेगा। इस हेतु पारदर्शी नीतियां

, प्रशासनिक प्रबंधन और योजनाओं के क्रियान्वय की महती
आवश्यकता होगी। समानता का प्रत्यक्षीकरण कराये बिना सुखद भविष्य की कल्पना करना केवल मृगमारीचिका के
पीछे भागने जैसा ही होगा।

प्रशासनिक तंत्र में स्थाई कर्मचारियों-अधिकारियों के शोषण से संविदाकर्मियों तथा दैनिक
वेतनभागियों को बचाना होगा। समाज के अंतिम छोर पर बैठे धरातली मानसेवियों को जिलास्तरीय वातानुकूलित
अधिकारियों की धमकियों से निजात दिलाना पडेगी और देना पडेगी उन्हें सुरक्षित भविष्य की गारंटी।

पंजाब में कांग्रेस की आन्तरिक कलह ने लुटिया डुबोकर ही छोडी

जातिगत
वैमनुष्यता फैलाने वाले कृत्यों पर अंकुश लगाये बिना सुशासन का दावा पूरा नहीं हो सकेगा।

वहीं पंजाब में कांग्रेस
की आन्तरिक कलह ने उसकी लुटिया डुबोकर ही छोडी। सिध्दू का अमरेन्दर सिंह के साथ विवाद और बाद में चन्नी
के साथ सिध्दान्तगत खींचतान की स्थिति में पार्टी के आलाकमान की खामोशी ने पंजाब को पंजे से मुक्त कर
दिया।आम आदमी पार्टी ने देश की राजधानी में किये गये कामों का जमकर ढिंढोरा पीटा

मंत्रिमंडल में भागीदारी दर्ज करने को लेकर उठापटक

मुफ्तखोरी की घोषणायें
की और दिखाये लोगों को सब्जबाग। ऐसे में पंजाब जैसे प्रांत में पार्टी की मुश्किलें अब अपने ही वायदे पूरे करने
को लेकर ही खडी होंगी। नये चेहरों में उभरने को लेकर संघर्ष होने की स्थितियां निर्मित होंगी।

मंत्रिमंडल में
भागीदारी दर्ज करने को लेकर उठापटक की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता। उत्तराखण्ड की अपनी
अलग ही स्थितियां हैं जो देवभूमि के जयघोष को निरंतर रेखांकित करती रहीं हैं। धार्मिक पर्यटन पर केन्द्रित यह
राज्य हमेशा से ही तीर्थयात्रियों से होने वाली आय पर ही निर्भर रहा है।

कुछ स्थानों पर औद्योगिक इकाइयों की
स्थापना जरूर हुई है परन्तु हर्बल औषधियों के उद्पादन में अग्रणीय रहने वाले क्षेत्र में आनुपातिक दरों पर
दृष्टिपात करने पर निराशा ही हाथ लगती है।

ऐसे में देवालयों की शंखनाद कितनी दूर तक सुनाई पडेगा, यह तो
आने वाला समय ही बतायेगा।

आम आवाम का संतुष्ट होना बेहद आवश्यक

मणिपुर और गोवा में दलगत समीकरणों ने परिणामों को मुद्दों के आधार पर
प्रदर्शित किया।क्षेत्रीय विकास की संभावनाओं के साथ-साथ आम आवाम का संतुष्ट होना बेहद आवश्यक है। यही

चुनौतियां आने वाले समय में राजनैतिक दलों के सामने खडी होने वालीं हैं।मोदी के चमत्कारिक व्यक्तित्व नेजहां
भारतीय जनता पार्टी को विसम परिस्थितयों में भी पार लगा दिया है

वहीं केजरीवाल का करिश्मा पंजाब की धरती
पर लहलहाने लगा है। ममता के मंसूबे धरती पर आने के पहले ही धराशाही हो गये। ऐसे में यह कहना
अतिशयोक्ति न होगा कि लोकसभा के चुनावों की पाठशाला है वर्तमान परिणाम।

भारतीय जनता पार्टी भावी रणनीति बनाने में जुट गई है

इन परिणामों को लेकर सन
2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों हेतु अभी से भारतीय जनता पार्टी भावी रणनीति बनाने में जुट गई है वहीं
कांग्रेस में योजनावध्द ढंग से घुसपैठकर पहुंचे वामपंथी विचारधारा के पोषकों ने अपने विदेशी आकाओं से संपर्क
साधना शुरू कर दिया है।

आम आदमी पार्टी अपनी विचारधारा से अन्य दलों पर झाडू फेरने की फिराक में हैं। वहीं
तृणमूल फिर से गैर भाजपा दलों को एक छत्र के नीचे लाने की फिराक में जुट गई है।

फिलहाल चुनावों के
परिणामों पर प्रदेश सरकारों के गठन की तैयारियां जोरों पर हैं। मंत्री पद हथियाने के लिए हथकण्डे अपनाये जा रहे
हैं। सरकारों के नये स्वरूपों को लेकर आम आवाम केवल और केवल प्रतीक्षा ही कर रही है।

इस बार बस इतना ही।
अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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