श्रवण दोष के बारे में लोगों के बीच जागरूकता
नई दिल्ली, 03 मार्च केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने श्रवण विकारों और श्रवण दोष के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व पर जोर दिया।उन्होंने कहा कि जन भागीदारी और जन आंदोलन के साथ हर कोई लोगों के बीच मौजूदा ज्ञान को बढ़ाने में प्रभावी ढंग से योगदान कर सकता है, ताकि शीघ्र पहचान के लाभ और समय पर श्रवण विकारों के उपचार के बारे में जानकारी मिल सके।
जिसे खोज न पाएं और जिसे बिना उपचार छोड़ दें तो सुनने की बीमारियां विकलांगता में बदल सकती हैं, जिससे
कई लोगों की उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने आज (03/03/2022) केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार की उपस्थिति में डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में विश्व श्रवण दिवस समारोह की 10वीं वर्षगांठ के अवसर पर संबोधित किया। इस वर्ष विश्व श्रवण दिवस का विषय“जीवन भर सुनना, ध्यान से सुनना” है।
संबंध में जागरूकता पैदा करने में आशा
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस संबंध में जागरूकता पैदा करने में आशा और एएनएम, डॉक्टर्स, गैर सरकारी संगठन और नर्सों की महत्वपूर्ण भूमिका को सराहा।उन्होंने उनसे ऐसे लोगों और छोटे बच्चों के माता-पिता को शीघ्र जांचऔर सुनने में अक्षम दिव्यांगों (श्रवण बाधितों) की पहचान के लिए शिक्षित करने का आग्रह किया।उन्होंने सभी कोआगाह भी किया कि “हमें खुद से कोई दवा नहीं लेनी चाहिए बल्कि डॉक्टरों से परामर्श लेना चाहिए और सुनने की
समस्याओं से संबंधित कोई भी दवा लेने से पहले उचित सावधानी बरतनी चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि तकनीकी विकास के आधुनिक युग में तेज आवाज के संपर्क आने समेत सुनने की क्षमता खोने (बहरेपन) के लगभग सभी कारणों को रोका जा सकता है और उनका इलाज किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को
हासिल करने में तकनीकी का इस्तेमाल गेम चेंजर साबित हो सकता है।
उन्होंने बुजुर्गों की स्वास्थ्य सेवा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बजुर्गों
और बच्चों को बहरेपन के इलाज में प्राथमिकता दी जा रही है।सरकार सभी लोगों और विशेषकर बुजुर्गों के
कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पास
पहले से ही बुजुर्गों की विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को हल करने के लिए एक समर्पित कार्यक्रम है,
जिसे“बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम” (एनपीएचसीई) कहा जाता है।वर्चुअल माध्यम से केंद्रीय मंत्री ने एम्स और मैसूर के अखिल भारतीय वाक एवं श्रवण संस्थान (AIISH) सेसम्बद्ध 11 आउटरीच सर्विस सेंटर (ओएससी) में श्रवण बाधितों के लिए नवजात श्रवण जांच सुविधाओं की शुरुआत की।
उन्होंने नवजात, स्कूली छात्रों और वयस्कों के लिए पिछले दो वर्षों की स्क्रीनिंग (जांच) रिपोर्ट के साथ-साथ
बच्चों व बुजुर्गों के लिए श्रवण और जांच के लिए दिशा-निर्देशों की पुस्तक का भी विमोचन किया।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने दिशानिर्देश जारी करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में प्रति वर्ष 1 लाख से अधिक शिशुओं को सुनने की समस्याओं का निदान किया जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि इससे पता चलता है कि यह एक उभरती हुईचुनौती है। इन दिशानिर्देशों से विभिन्न आयु वर्गों को लाभ होगा और इसलिए इन्हें बढ़ावा देने की जरूरत है।
नई दिल्ली के एम्स और मैसूर के एआईआईएसएच से सम्बद्ध 11 ओएससी में नवजात श्रवण जांच सुविधा शुरू होने
के साथ ही जांच, शुरुआती पहचान और रोकथाम की क्षमता में काफी वृद्धि होगी।केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने कहा कि विश्व श्रवण दिवस हमें सुनने में अक्षम दिव्यांगों के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।
उन्होंने गर्भवती महिलाओं और माताओं को इस मुद्दे के बारे में जागरूक होने के महत्व पर जोर दिया, ताकि वे श्रवण दोष वाले अपने बच्चों का जल्द से जल्द इलाज करा सकें।
राजेश भूषण ने कहा कि सुनने की समस्या से संबंधित
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि सुनने की समस्या से संबंधित भारत का पहला कार्यक्रम-बहरेपन की
रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीसीसीडी) 2006 में एनएचएम के तहत शुरू किया गया था।
इसके तीन स्तंभ हैं
श्रवण विकारों की रोकथाम, शीघ्र पहचान और उपचार के बारे में जागरूकता पैदा करना
आशा वर्कर, एएनएम, जीडीएमओ और ईएनटी सर्जन आदि सभी संबंधित पेशेवर को प्रशिक्षण देना।
जांच, उपचार और पुनर्वास से संबंधित सेवा वितरण को सुदृढ़ बनाना।
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