संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग? कैसा संविधान कैसा कानून?
उत्तर प्रदेश गाजियाबाद। भारतीय संविधान एव कानून महिलाओं व बालिकाओं के प्रति संवेदनशील है, यह संविधान व कानून का अदभुत गुण है किन्तु, उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद ही नहीं अपितु, देश भर में कुछ धूर्त महिलायें व लड़कियाँ कानून व संविधान की संवेदनशीलता का दुरुपयोग कर, समाज के भद्र पुरुषों एव बच्चों को ब्लैकमेल करने व जेल का भय दिखाकर, धन उगाहने व भौतिक संसाधन की पूर्ति हेतु दुरुपयोग करते हैं।
मजे की बात है कि, संविधान व कानून सर्व समाज की भलाई के लिए हैं किन्तु, कुछ धूर्त किस्म के अधिकारी एवं कुछ धूर्त किस्म के स्वेतपोष अराजक तत्व कानून का दुरुपयोग, अनैतिक धन अर्जन करने में, एक संसाधन के तौर पर मानवता के विरुद्ध हथियार की तरह दुरुपयोग करते हैं।
संविधान तथा दण्ड प्रक्रिया सहिंता अधिनियम 1973 द्वारा प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी एव साक्ष्यों से ज्ञात है कि, गाजियाबाद पुलिस, सरकार द्वारा प्रदत्त वर्दी एव संविधान तथा दण्ड प्रक्रिया सहिंता अधिनियम 1973 द्वारा प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग कर, आरोपियों के परिजनों के मौलिक अधिकारों एव मानवाधिकारों का हनन करते हैं।
Emergency Credit Line Guarantee Scheme (ECLGS)
माना कि, दण्ड प्रक्रिया सहिंता 1973 अधिनियम की धारा 41 से लेकर 60 तक, अभियुक्तों को गिरफ्तार करने की पुलिस को विशेषाधिकार प्रदान करती हैं किन्तु, वही धारायें अभियुक्तों को भी कुछ अधिकार देती हैं।
इतना ही नहीं भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 किसी भी नागरिक को उसकी गिरफ्तारी के विरुद्ध अधिकार देता है किन्तु, उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए संविधान व कानून कुछ मायने नहीं रखता, अपने पर आ जाये तो, बदले की कार्यवाही से भी पीछे नहीं हटते।
पुलिस को लगभग 10 दिवस तक कोई सूचना नहीं दी
इसी क्रम में विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी व प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात है कि, थाना कवि नगर अधिकारिता क्षेत्रान्तर्गत निवासी नाबालिग दलित लड़की के साथ पिछड़े वर्ग के तीन लड़कों द्वारा, दिनांक 19 मई 2022 को सामूहिक बलात्कार होना बताया, तथा उक्त निन्दनीय सामूहिक बलात्कार की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 28 मई 2022 को, मु0अ0संख्या 0674/2022, भा0 दण्ड सहिंता अधिनियम 1860 की धारा, 363/376 डी व लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 3, 4 (2) तथा अनुसूचित जाति एवं जन जाति अधिनियम 2012 की धारा 3(2)(IV) थाना कविनगर में पंजीकृत किया गया है।
न ही पीड़िता की कोई चिकित्सा परीक्षण करवाया गया
किन्तु, सामूहिक बलात्कार की शिकार पीड़िता और, न ही उसके पिता द्वारा पुलिस को लगभग 10 दिवस तक कोई सूचना नहीं दी गयी और, न ही पीड़िता की कोई चिकित्सा परीक्षण करवाया गया किन्तु, पीड़िता के पिता ने पुलिस को दी तहरीर में स्पष्ट लिखा है कि, उसकी बेटी को बहुत ही गंभीर चोटें आयीं थी, जिसकी वजह से उन्होंने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने में देरी की गई।
एफआईआर की तहरीर पर गौर करें तो, ऐसा प्रतीत होता है कि, नामित आरोपी ग्रामीण ओछी राजनीति की बलि चढ़ाये जा रहे है जिसकी भाषा किसी अधिवक्ता द्वारा लिखवाई गयी है ।
आरोपी सुमित यादव के दो भाई पिछले 4 दिनों से हिरासत में
कुलमिलाकर क्या सही है और, क्या गलत न्यायालय में स्पष्ट हो जायेगा किन्तु, आरोपी सुमित यादव के दो भाई आदेश यादव व आकाश यादव को, सुमित यादव के बदले में, आरोपी व उसके परिजनों पर दवाब बनाने के लिये, कविनगर पुलिस ने पिछले 4 दिनों से हिरासत में ले लिया हैं, क्या ये न्याय संगत है? क्या किसी आरोपी या अपराधी के बदले में, उसके किसी भी सगे संबंधी, या इष्ट मित्र को हिरासत में लेकर दवाब बनाना न्यायोचित है? बहराल, समूची कथा सूत्रों पर आधारित है, सच क्या है, उच्च स्तरीय निष्पक्ष जाँच के बाद ही पता चलेगा।
संवाददाता डा0वी0के0सिंह की रिपोर्ट
(खोजी पत्रकार)