
आराधना करने वाले व्यक्ति को विष्णु पूजा का फल मिलता है

एकादशी तिथि भगवान श्रीविष्णु एकी परम प्रिय तिथि है। एकादशी भगवान विष्णु से प्रकट देवी का स्वरूप है, जिन्होंने मुर नामक राक्षस का वध किया था। इनमें भी देवशयनी एकादशी सबसे विशेष है, क्योंकि इस दिन संपूर्ण सृष्टि के पालनकर्ता श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं। इस दिन यानी आषाढ़ मास’ शुक्ल पक्ष की Ekadashi देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक, कुल चार महीनों की यह अवधि चातुर्मास कहलाती है,जिसमें भगवान विष्णु विश्राम की अवस्था में रहते हैं।यह भी पढ़ें:गिल का लगातार दूसरा शतक, यशस्वी का फिर बोला बल्ला: कप्तानी पारी
शास्त्रों में वर्णित है कि योगनिद्रा एक दिव्य, ऊर्जात्मक विश्राम है, जिसमें भगवान नारायण सृष्टि संचालन से कुछ समय के लिए विराम लेते हैं। ऐसे में प्रश्न. उठता है कि जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं, तब सृष्टि के संचालन का कार्य कौन करता है? इस संदर्भ में मान्यता है कि भगवान शिव इस कालखंड में सृष्टि के संचालन का दायित्व संभालते हैं। इसलिए इस अवधि में जो व्यक्ति भगवान शिव की आराधना करता है, उसे विष्णु पूजा का भी फल प्राप्त होता है, यही सनातन धर्म की दिव्यता है।देवशयनी एकादशी आध्यात्मिक रूप से अत्यंत शुभ और फलदायी मानी गई है। पद्म पुराण के अनुसार, देवशयनी Ekadashi के दिन भगवान विष्णु का पूजन और व्रत करने से व्यक्ति को तीनों लोकों और त्रिदेवों की आराधना का पुण्य प्राप्त होता है।चार महीनों में संयम : जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं तो उस अवधि में शुभ कार्य, जैसे- विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कार आदि नहीं किए जाते हैं। मान्यता है कि जब सृष्टि के पालनकर्ता ही विश्राम कर रहे हों, तब मंगल कार्य आरंभ करना उचित नहीं होता, इसलिए इन चार महीनों में संयम, साधना और व्रत पर विशेष बल दिया गया है।
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व्रत, साधना का समय देवशयनी एकादशी को विष्णुशयनी एकादशी आदि कई नामों से जाना जाता है। इस तिथि से प्रारंभ चातुर्मास की अवधि में साधक व्रत रखकर, प्रतिदिन सूर्योदय के समय स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन संकल्प के साथ चातुर्मास व्रत और साधना का प्रारंभकरना चाहिए, “हे देव ! मैंने यह व्रत आपकी उपस्थिति में लिया है, यदि आप मेरे प्रति अनुग्रह करें तो यह व्रत-साधना निर्विघ्न पूर्ण हो जाए।” चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु का विश्राम ब्रह्मांडीय ऊर्जा के संतुलन के लिए होता है। देवशयनी एकादशी (6 जुलाई) पर विशेष
चातुर्मास में एक बार भोजन :भक्त देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का व्रत नियम-संयमपूर्वक रखते हैं, जिसमें एक बार भोजन करते हैं और स्वास्थ्य लाभ के लिए श्रावण मास में शाक, भाद्रपद मास में दही, आश्विन मास में दूध और कार्तिक मास में दाल ग्रहण नहीं करते हैं। ऐसा करने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है। प्राचीन काल के वैज्ञानिकों को ऋषि-महर्षि की उपाधि दी गई है, जिनके शोध कार्य ग्रंथों के रूप में जनमानस को स्वास्थ्य लाभ, कार्यों में सफलता और मृत्यु उपरांत मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर मानव जीवन को सुखी और संपन्न बना रहे हैं।
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