
प्रदूषित वातावरण में रहने वाले लोग मिले अधिक पीडित

धूम्रपान नहीं, वायु प्रदूषण से अब सिर्फ धूम्रपान ही नहीं, वायु प्रदूषण और कुछ पारंपरिक हर्बल दवाएं भी इंसान के डीएनए को इतना नुकसान पहुंचा रही हैं कि फेफड़ों में ट्यूमर बनना शुरू हो जाता है।ताजा अध्ययन में जिन लोगों ने कभी सिगरेट नहीं हुई, उनके फेफड़ों में भी ऐसे म्यूटेशन पाए जा रहे हैं। खास बात यह है कि प्रदूषित वातावरण में रहने वाले लोगों के ट्यूमर में यह म्यूटेशन अधिक मात्रा में मिले हैं। म्यूटेशन से तात्पर्य है डीएनए अनुक्रम (जेनेटिक कोड) में होने बाला स्थायी परिवर्तन। यह परिवर्तन कोशिकाओं के भीतर जोन को संरचना को प्रभावित करता है, जिससे प्रोटीन बनने की प्रक्रिया में गड़बड़ी हो सकती है।यह भी पढ़ें:नेपाल और चीन की सीमा पर बाढ़ से मानसरोवर यात्रा प्रभावित
हर्बल दवाएं भी घातक शोध में सामने आया>>>Visit: Samadhanvani

म्यूटेशन स्वाभाविक रूप से हो सकता है या बाहरी कारकों जैसे वायु प्रदूषण, धूम्रपान, रेडिएशन या रसायनों के संपर्क से भी हो सकता है। इसकी वजह से कैंसर जैसी घातक बीमारियां भी हो सकती हैं। अध्ययन के अनुसार फेफड़ों का कैंसर अब केवल धूम्रपान करने वालों की बीमारी नहीं रहा। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो और नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट (एनसीआई) द्वारा किए गए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया हैपारंपरिक चीनी औषधियों में इस्तेमाल होने वाला एरिस्टोलोचिक एसिड भी फेफड़ों के कैंसर से जुड़ा हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन औषधियों का धुआं सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचता है और डीएनए को नुकसान पहुंचाता है।
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