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Akshayvarnath Srivastava:एक था गड़रिया’ नाटक ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के सहयोग से Akshayvarnath Srivastavaने देथा की कहानी का किया बेमिसाल मंचन गाज़ियाबाद।

उत्तर प्रदेश में संगीत नाटक

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी (संस्कृति विभाग) एवं थर्टीन स्कूल ऑफ टेलेंट डेवलपमेंट द्वारा हिंदी भवन के सभागार में विजयनाथ देथा की दो कहानियों का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया गया।

अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव के निर्देश में प्रस्तुत नाटक ”एक था गड़रिया’ दो कहानियों ‘मनुष्य का गड़रिया’ और ‘दुविधा’ पर आधारित था। नाटक के माध्यम से समाज में धर्म और ज्ञान के नाम पर होने वाले ढोंग पर कटाक्ष किया गया है।

Akshayvarnath Srivastava
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मनुष्य का गड़रिया’ में दिखाया गया है कि एक व्यक्ति धर्म और कथित ज्ञान के बूते मनुष्यों के रेवड़़ को गड़रिए की तरह हांकता ही नहीं है बल्कि वह ढोंगी व्यक्ति सीधे साधे जनसमूह को अपनी लच्छेदार बातों में फंसा कर अंधविश्वास भी फैला है।

लेकिन गड़रिया अपने अनुभव और तर्कों के आधार पर न सिर्फ तथाकथित धर्मगुरु को मात देता है बल्कि जनता को जागरूक भी करता है। वहीं, ‘दुविधा’ कहानी में दिखाया गया है कि कोई व्यक्ति अचानक ऐसी ‘दुविधा’ में फंस जाता है जिसका पता उसे स्वयं नहीं चलता।

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दो कहानियों को जोड़कर आगे बढ़ता यह नाटक हर नए दृश्य के साथ रोचकता पैदा करते हुए आगे बढ़ता है। कथानक के अनुसार सेठ मायापति के इकलौते बेटे मनमोहन की बारात वापसी में सुस्ताने के लिए जंगल में घेर-घुमेर खेजड़ी की घनी छाया में रुकती है।

संजोग से उस खेजड़ी पर रहने वाला भूत दुल्हन पर आसक्त हो जाता है। भूत अपने प्रेम के मोहपाश में फंसा कोई रास्ता तलाश रहा था,दूसरी ओर मनमोहन नवविवाहिता को छोड़़ कर व्यापार करने पांच वर्ष के लिए परदेश चला जाता है।

Akshayvarnath Srivastava
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रास्ते में दोनों की मुलाकात होती है और भूत सेठ के बेटे का रूप धर कर घर में प्रवेश पा जाता है। मनमोहन की घर वापसी से पहले ही‌ कहानी में की ऐसे मोड़ आते हैं कि उसे समय से पहले ही घर लौटना पड़ता है।

घर पहुंच कर वह भी दुविधा में पड़ जाता है। भूत के रूप बदल कर पुत्र के रूप में रहने की वजह से मनमोहन ही नहीं उसके परिजनों और गांव वालों के सामने उसकी पहचान का संकट खड़ा हो जाता है।

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गडरिया न सिर्फ भरम की स्थिति दूर करता है बल्कि दूध का दूध-पानी का पानी अलग करने जैसा न्याय भी करता है। सभी कलाकारों ने अपने अभिनय कौशल से एक-एक दृश्य से नाटक में जान फूंक दी।

Akshayvarnath Srivastava
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गड़रिए की भूमिका में अभिनव सचदेवा, भूत बने राजीव वैद, मनमोहन की भूमिका में शिवम सिंघल, अंगूरी (दुल्हन) सिमरन मिश्रा, मौलवी बने प्रवीन डहल के अलावा अन्य भूमिका का निर्वहन कर रहे आर्यन सोलोमन, श्रेयश अग्निहोत्री, तरुणा पाल, अदिति सोलोमन ने अपनी अभिनय क्षमता का भरपूर परिचय दिया। भूमिकाओं में जान डाल दी।

सूत्रधार की भूमिका निभाने वाले अदित श्रीवास्तव

सूत्रधार की भूमिका निभाने वाले अदित श्रीवास्तव व श्रेयश अग्निहोत्री ने भी दर्शकों की भरपूर प्रशंसा बटोरी। गीत और संगीत ने नाटक की जीवंतता को बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नाटक के गीत राष्ट्रीय नाटक विद्यालय में एक्टिंग के प्रोफेसर अजय कुमार ने लिखे हैं। जिन्हें संगीतबद्ध करने का काम राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के ही संगीतकार अनिल मिश्रा और राजेश पाठक ने किया है।

Akshayvarnath Srivastava
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रूप सज्जा वरिष्ठ मेकअप डायरेक्टर हरि सिंह खोलिया ने किया है। वागीश शर्मा, चैती शर्मा, रिद्धि जैन, शैलेंद्र चौहान, रोजी श्रीवास्तव, साक्षी, करुणा, हर्षिता, जितेंद्र, गौरव, नीरज शर्मा, राहुल, इंप्रीत सिंह, प्रमोद सिसोदिया, आदित्य जोयल पीटर, गुरदीप सिंह आदि ने भी नाटक के मंचन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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इस अवसर पर बलदेव राज शर्मा, रवि सिंह, ललित जायसवाल, सुभाष गर्ग, सुरेन्द्र सिंघल, डॉ. बीना मित्तल, सुभाष चंदर, आलोक यात्री, शिवराज सिंह, सत्यनारायण शर्मा, कुलदीप, उमा नवानी,

सोनिया सेहरा, एकता कोहली, मंजू कौशिक, पराग कौशिक, डॉ. प्रीति कौशिक, देवेंद्र देव, बी. एल. बतरा, मधुकर सिंघल, मुकेश अरोड़ा व रिंकल शर्मा सहित बड़ी संख्या में दर्शक मौजूद थे।

विशेष संवाददाता

Akshayvarnath Srivastava
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