अग्निपथ पर अग्निकाण्ड क्यों?
दरअसल, भारतीय दण्ड सहिंता अधिनियम(1860) में एक भी ऐसी धारा नहीं है जिसके अंतर्गत, के विरुद्घ दण्ड का प्रावधान हो, कुछ विधिवेत्ताओं एव पत्रकारों को भृम है कि, भा0द0सहिंता अधिनियम 1860 की धारा 124A, जोकि, राजद्रोह को परिभाषित करती है, में राष्ट्रद्रोह मामले में भी दण्ड का प्रावधान है। जबकि, 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के बाद, ब्रिटिस सरकार ने क्रांतिकारियों का दमन एव दण्डित करने हेतु, भारतीय दण्ड सहिंता अधिनियम 1860 लागू की जो कि, लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में गठित विधि आयोग द्वारा 1834 लिखा गया था।
क्रांतिकारियों एव तत्कालीन स्वतन्त्र रियासतों की आर्थिक रूप से कमर तोड़ने के लिए, भारतीय आयकर अधिनियम 1860 भी, अधिनियमित व लागू किया। तत्कालीन समय मे राज द्रोह शब्द का अर्थ राजा के विरुद्ध विचार प्रकट करना ही राजद्रोह को परिभाषित करता था जिसका अर्थ था, राजा अर्थात ब्रिटिस रानी या राजा जो भारत पर शासन करते थे, के विरुद्ध वैचारिक अभिव्यक्ति करना राजद्रोह माना जाता था। इतना ही नहीं, उन दिनों राष्ट्रवाद अपने चरम पर था, सभी को आजादी चाहिये थी, बात है देश के प्रत्येक वर्ग के लिए आजादी के मायने अलग – अलग थे। भारतीय दण्ड सहिंता अधिनियम 1860 के लागू के दस वर्ष बाद क्रांतिकारियों के पूर्णतयः दमन हेतु, धारा 124A को जोड़ा गया जो कि, आज के परिवेश में पर्याप्त नहीं है।
राष्ट्रद्रोहियों को यथोचित दण्ड का प्रावधान हो सके
वर्तमान परिस्थितियों में, जनता के द्वारा चुनी गयीं राज्य सरकारों एव केन्द्र सरकार के विरुद्ध मतभेद होना या वैचारिक अभिव्यक्ति करना लोकतन्त्र है और, वैचारिक अभिव्यक्ति की
आजादी नागरिक का मौलिक अधिकार है राजद्रोह या राष्ट्रद्रोह नहीं।
एक पत्रकार होने के नाते, देश की जनता से यह, अपील जरूर करना चाहूँगा कि, संविधान ने देश के प्रत्येक अमीर व गरीब को समान रूप से मौलिक अधिकार दिये हैं, जिसके अंतर्गत आप सरकार की गलत नीतियों का शान्ति पूर्ण विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं किन्तु, नीतियों का विरोध दर्ज करवाने हेतु, राज्य एव राष्ट्र की संपत्ति को क्रोध की अग्नि में स्वाहा करना, तोड़फोड़ करना, नष्ट करना गलत ही नहीं अपितु, राष्ट्रद्रोह है। ऐसे व्यक्ति जो, राष्ट्र या राज्य की संपत्ति नष्ट करना अपना संवैधानिक अधिकार समझते हैं, बिलकुल गलत है, यह एक दण्डनीय अपराध है, वे जो कोई भी ऐसे कृत्य में संलिप्त है फिर चाहें वह, विपक्षी दल के नेता ही क्यों न् हों राष्ट्रद्रोही हैं- ,के विरुद्ध निश्चय ही कठोर वैधानिक कार्यवाही होनी चाहिये।
धारा 124A को संशोधित कर विस्तृत रूप देने की आवश्यकता
चूँकि, धारा 124A, राजद्रोह को परिभाषित करती है, राष्ट्रद्रोह को नहीं, एक पत्रकार होने के नाते मेरा सुझाव है कि, देश की सर्वोच्च पंचायत संसद न्यायपालिका की सहायता से इसमे सुधार कर विस्तृत करे ताकि, राष्ट्रद्रोहियों को यथोचित दण्ड का प्रावधान हो सके किन्तु, कदाचित ऐसा न् हो सके, चूँकि, हर सत्ताधारी के मन मे यह भय अवश्य रहता है कि, कल वह विपक्ष में होगा तो, वह स्वयं हंगामा कैसे करेगा?
बहराल, उक्त प्रकरण में देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ही कुछ कर सकती है, अग्निपथ पर अग्निकाण्ड क्यों? क्या सत्तासीन सरकार अपनी कोई चूक मानती है या नहीं, ये सरकार के अपने विवेक एव न्यायपालिका के हस्तक्षेप पर निर्भर है।
डॉ0वी0के0सिंह
(खोजी पत्रकार)