नवरात्रि में जिस तरह देवी पूजा होती है ठीक उसी तरह इस दिन सभी शिक्षण संस्थानों में सरस्वती पूजा एवं अर्चना की जाती है।

 सरस्वती माता, कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग व विद्यार्थी सरस्वती माता के साथ-साथ पुस्तक, कलम की पूजा करते हैं। संगीतकार इस दिन वाद्य यंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका और रंगों की पूजा करते हैं।

मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे पृथ्वी पर छह भुजाओं वाली शक्ति रूप स्त्री प्रकट हुईं, जिनके हाथों में पुस्तक, पुष्प, कमंडल, वीणा और माला थी। जैसे ही देवी ने वीणा वादन किया

 चारों ओर वेद मंत्र गूंज उठे। ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे और वसंत पंचमी उत्सव शुरू हुआ।संगीत दामोदर ग्रंथ के अनुसार वसंत राग श्री पंचमी से प्रारंभ होकर हरिशयनी एकादशी तक गाया जाता है। श्री पंचमी से वसंत राग के गायन की शुरुआत होती थी।

इस कारण लोक में धीरे-धीरे यह तिथि वसंत पंचमी के नाम से विख्यात हो गई। एक माह बाद आने वाली वसंत ऋतु में फसलें पकने लगती हैं, फूलों का सौंदर्य पृथ्वी की सुंदरता बढ़ाता है इसलिए ऊर्जा के परिचायक पीले रंग की प्रधानता वसंत पंचमी पर्व से शुरू हो जाती है।