गुरुवार को भगवान गणेश के ‘द्विजप्रिय’ रूप की पूजा होगी
9 फरवरी, गुरुवार को भगवान गणेश के ‘द्विजप्रिय’ रूप की पूजा होगी। साथ में देवी पार्वती का पूजन भी होगा। इस दिन सुहागन महिलाएं व्रत रखेंगी। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के साथ व्रत पूरा हो जाएगा। फाल्गुन मास शुरू होते ही पहला पहला व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को होता है। ये संकष्टी चतुर्थी होती है। फरवरी इस दिन भगवान गणेश के उस रूप की पूजा होती है जिसमें यज्ञोपवित यानी जनेऊ पहने हो। इसलिए इसे द्विजप्रिय चतुर्थी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में गौरी-गणेश की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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गौरी-गणेश की पूजा के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के बाद लाल कपड़े पहनकर गौरी-गणेश की पूजा के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है।गुरुवार को तिथि और ग्रह-नक्षत्र से मिलकर सुकर्मा और मातंग नाम के दो शुभ योग बनेंगे। साथ ही बुध मकर राशि में सूर्य के साथ उसी के नक्षत्र में रहेगा। जिससे बुधादित्य राजयोग बनेगा। फरवरी इन योगों के शुभ संयोग में किए गए व्रत और पूजा-पाठ का शुभ फल और बड़ जाएगा। चतुर्थी की शुरुआत 9 फरवरी को सूर्योदय के साथ ही हो जाएगी। ये तिथि अगले दिन सुबह करीब 8 बजे तक रहेगी। ज्योतिष में गुरुवार को सौम्य और शुभ दिन माना जाता है।
गौरी-गणेश की पूजा करना विशेष शुभ रहेगा
इस संयोग में गौरी-गणेश की पूजा करना विशेष शुभ रहेगा।पौराणिक कथा के मुताबिक जब देवी पार्वती भगवान शिव से किसी बात को लेकर रूठ गईं तो उन्हें मनाने के लिए भगवान शिव ने भी ये व्रत किया था। फरवरी इससे पार्वती जी प्रसन्न होकर वापस शिव लोक लौट आई थीं। इसलिए गणेश-पार्वती जी दोनों को यह व्रत प्रिय है इसलिए इस व्रत को द्विजप्रिय चतुर्थी कहते हैं।चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद लाल कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थान पर दीपक जलाएं। साफ आसन या चौकी पर भगवान गणेश और देवी गौरी यानी पार्वती की मूर्ति या चित्र रखें।
आरती करने के बाद प्रसाद बांट दें
धूप-दीप जलाकर शुद्ध जल, दूध, पंचामृत, मौली, चंदन, अक्षत, अबीर, गुलाल, जनेऊ, दूर्वा, कुमकुम, हल्दी, मेहंदी, फूल और अन्य पूजन सामग्री से गौरी-गणेश की पूजा करें। पूजा के दौरान ॐ गणेशाय नमः और गौरी दैव्ये नम: मंत्रों का जाप करें। मिठाई और फलों का नैवेद्य लगाएं। आरती करने के बाद प्रसाद बांट दें। फरवरी हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 9 फरवरी को प्रातः 4 बजकर 53 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 10 फरवरी को सुबह 6 बजकर 28 मिनट पर होगा। इस दिन चंद्रोदय का समय रात्रि 9 बजकर 13 मिनट निर्धारित किया गया है।
चंद्रोदय के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है
मान्यता है कि चतुर्थी व्रत के दिन चंद्रोदय के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन साधकों को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करना चाहिए और भगवान गणेश का स्मरण करते हुए पूजा की तैयारी करनी चाहिए। इसके बाद लाल वस्त्र धारण करें, ऐसा इसलिए क्योंकि यह रंग गणपति जी को बहुत प्रिय है। पूजा काल में भगवान गणेश की प्रतिमा को अच्छे से साफ करें और फिर एक चौकी पर नया वस्त्र बिछाकर उनकी प्रतिमा को स्थापित करें। इसके बाद गणपति जी की पूजा षडशोपचार विधि से करें और विघ्नहर्ता के मूल मंत्र का जाप निरंतर करते रहें।
श्री गणेश स्तोत्र और गणेश चालीसा का पाठ अवश्य करें
पूजा काल में श्री गणेश स्तोत्र और गणेश चालीसा का पाठ अवश्य करें। अंत में गणेश जी की आरती करें और अज्ञानता वश हुई गलतियों के लिए माफी मांग लें। सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिए ईशान कोण में चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। सबसे पहले चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। भगवान के सामने हाथ जोड़कर पूजा और व्रत का संकल्प लें। गणेश जी को जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें। ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान गणेश से प्रार्थना करें।
इसके उपरांत एक केले का पत्ता लें, इस पर आपको रोली से चौक बनाएं। चौक के अग्र भाग पर घी का दीपक रखें। संकष्टी चतुर्थी का व्रत शाम के समय चंद्र दर्शन के बाद ही खोला जाता है। चांद निकलने से पहले गणपति की पूजा करें। पूजा के बाद चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें और व्रत का पारण करें। पूजन समाप्ति और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न का दान करें और भगवान से प्रार्थना भी करें।
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