दिल्ली से लंदन तक आजादी के जश्न की गूंज थी
हरीश भिमानी 1947 का हिन्दुस्तान बोल रहा हूं। जनवरी से 15 अगस्त 1947 के बीच हिन्दुस्तान में जो भी हुआ, वह इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। 15 कहानियों की इस सीरीज की 13वीं कड़ी में आज सुनिए, दिल्ली से लंदन तक आजादी के जश्न की गूंज थी, उधर जिन्ना कराची जा रहे थे कॉमनवेल्थ में हर जगह बेटियों का योगदान दुनिया ने देखी तिरंगे की ताकत
हरीश भिमानी 7 अगस्त को जब जिन्ना हिन्दुस्तान की सरजमीं को अलविदा कहकर वायसराय के विशेष डकोटा विमान से कराची के लिए रवाना हो रहे थे, तो कोई उन्हें एयरपोर्ट तक छोड़ने भी नहीं गया। दोपहर करीब 1 बजे जब यह विमान कराची के मौरिपुर हवाई अड्डे पर उतरा, तो वहां भी जिन्ना का स्वागत करने के लिए गिने-चुने कार्यकर्ता ही थे।
हरीश भिमानी बेदम से उनके नारे और जिन्ना के चेहरे की उदासी साफ बता रही थी, कि वे क्या खोकर आ रहे थे। 9 अगस्त को जोगेन्द्रनाथ मंडल की अध्यक्षता में हुई संविधान सभा में जिन्ना को नया अध्यक्ष चुन लिया गया। 9 अगस्त की ही शाम दिल्ली जश्न में नहा रही थी। हरीश भिमानी रामलीला ग्राउंड में हुई विशाल जनसभा के बाद आतिशबाजी की रोशनी से आसमान चमक उठा था।
11 अगस्त को जिन्ना पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति बन गए
हरीश भिमानी हीं, लंदन में भी मेरी आजादी का जश्न शुरू हो चुका था। हिन्दुस्तानी रेस्त्रां और होटल तिरंगी आभा बिखेर रहे थे। 11 अगस्त को जिन्ना पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति बन गए। साथ ही पाक में 14 अगस्त को लहराए जाने वाले झंडे की डिजाइन भी तय हो गई। यह डिजाइन बाराबंकी शहर के अमीरुद्दीन किदवई ने तैयार की थी।
हरीश भिमानी 13 अगस्त को रेडक्लिफ ने बंटवारे का नक्शा माउंटबेटेन को सौंप दिया। हरीश भिमानी गंभीरता से नक्शा देखने के बाद माउंटबेटेन ने उसे एक हरे रंग के संदूक में बंद कर दिया। हिदायत दी कि इस संदूक को उनकी मंजूरी के बिना कोई नहीं खोलेगा। रेडक्लिफ अच्छी तरह जानता था कि वह अपने काम के साथ न्याय नहीं कर पाया है, लिहाजा वह उसी दिन लंदन लौट गया। हालांकि, यह खबर लीक हो चुकी थी कि विभाजन की लकीरें खींचते-खींचते रेडक्लिफ बिना सोचे-समझे लाहौर और ढाका जैसे दो बड़े शहर पाक के हिस्से में डाल गया है।
हरीश भिमानी 13 अगस्त खत्म होते-होते बहुत कुछ बदल चुका था। पूर्वोत्तर की मणिपुर सहित कई रियासतों ने भारत के साथ आने की घोषणा कर दी थी। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने मेजर जनरल जनक सिंह को अपना नया प्रधानमंत्री बना लिया। पांडिचेरी के फ्रांसीसी अफसरों ने मेरी आजादी के जश्न की छूट दे दी।
हरीश भिमानी 24 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी जानी थी। भगत इस फैसले से खुश नहीं थे। उन्होंने 20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को एक खत लिखा कि उनके साथ युद्धबंदी जैसा सलूक किया जाए और फांसी की जगह उन्हें गोली से उड़ा दिया जाए।
22 मार्च 1931 को अपने क्रांतिकारी साथियों को लिखे आखिरी खत में भगत ने कहा- ”जीने की इच्छा मुझमें भी है, ये मैं छिपाना नहीं चाहता। मेरे दिल में फांसी से बचने का लालच कभी नहीं आया। मुझे बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है।”
भगत का घर अब जमात अली विर्क की संपत्ति
हरीश भिमानी गंगापुर से करीब 20 किलोमीटर दूर फैसलाबाद-जड़ानवाला रोड पर भगत सिंह के गांव बंगा पहुंचता हूं, तो पता चलता है कि लोग अब इस गांव को भगतपुर के नाम से पहचानने लगे हैं। जब मैं उनके घर पहुंचता हूं तो ये एकदम आम घरों जैसा ही नजर आता है। हालांकि, इस गांव के लोगों ने इस घर और इससे जुड़ी चीजों को काफी संभाल कर रखा हुआ है। भगत का घर अब जमात अली विर्क की संपत्ति है। बंटवारे के बाद उनके दादा सुल्तान मुल्क को यह घर सरकार की तरफ से मिला था।
भगत की हवेली में दो कमरे और एक आंगन है। भगत के पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह और सोरन सिंह भी स्वतंत्रता सेनानी थे। इस गांव में आज भी वो स्कूल मौजूद है, जहां भगत ने अपनी पढ़ाई की थी। अब इस स्कूल का नाम भगत सिंह के नाम पर ही रख दिया गया है।
बंटवारे के बाद भगत सिंह के भाई कुलबीर सिंह 1985 में पहली बार यहां आए थे। उन्होंने हमें बताया था कि यह घर भगत सिंह के परिवार का है। हमने तभी से इसे संभाल कर रखा है। गांव के लोगों का दावा है कि भगत सिंह के हाथ का लगाया हुआ आम का पेड़ आज भी इस घर के आंगन में मौजूद है।
माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं
हरीश भिमानी गांव के लोग भगत को अपना बेटा मानते हैं और कहते हैं कि आजादी का इतिहास चाहे भारत का हो या पाकिस्तान का, भगत के बिना पूरा नहीं हो सकता।जेलर चरत सिंह ने फांसी के तख्ते पर खड़े भगत के कान में फुसफुसा कर कहा कि वाहे गुरु को याद कर लो। भगत ने जवाब दिया- पूरी जिंदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया।
मैंने कई बार गरीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा है। अगर मैं अब उनसे माफी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है। इसका अंत नजदीक आ रहा है, इसलिए ये माफी मांगने आया है।
लाहौर में व्यापार कर रहे और भगत के प्रशंसक नूर मोहम्मद कसूरी कहते हैं
हिंदुस्तान और पाकिस्तान की आजादी के मूवमेंट को भगत सिंह ने अपना खून दिया था। बाद में कई बड़े लीडर इस मूवमेंट से जुड़ते चले गए। भगत के बारे में एक पाकिस्तानी शायर ने भी कहा है- ‘आजादी ए इंसा के वहां फूल खिलेंगे, भगत सिंह जिस जगह पे तेरा खून गिरा है।’
वे आगे कहते हैं कि पाकिस्तान में भी भगत का उतना ही कद है, जितना हिंदुस्तान में है। आज पाकिस्तान ने जो तरक्की की है उसके लिए भी भगत ने खून बहाया था। लाहौर हाईकोर्ट में वकील इम्तियाज अली शेख कुरैशी कहते हैं कि भगत सिंह भारत-पाकिस्तान ही नहीं दुनिया का हीरो है। उन पर केस चलाने के दौरान कानून का पालन नहीं किया गया और 400 से ज्यादा गवाहों को गवाही ही नहीं देने दी गई थी
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